उत्तराखण्डनैनीताल

युगों पुराना आयुर्वेदीय “नाड़ी परीक्षण” आज भी जटिल से जटिल रोगों का निदान करने में सक्षम, इस पद्धति से शारीरिक, मानसिक, आधिदैविक स्वास्थ्य की ले सकते हैं जानकारी

Ad

हल्द्वानी:- आयुर्वेद की प्राचीन और पारंपरिक पद्धति “नाड़ी परीक्षण” आज भी अपनी सटीकता और प्रभावशीलता के लिए जाना जाता है। इस पारंपरिक विज्ञान के माध्यम से, आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी की नाड़ी की गति, प्रकृति और अन्य विशेषताओं का अध्ययन करके उनके शारीरिक, मानसिक और आधिदैविक स्वास्थ्य का पता लगा सकते हैं।

Ad

आज आयुर्वेद दिवस के शुभ अवसर पर श्री: विश्वप्रांगण आयुर्वेद एवं पंचकर्म चिकित्सालय मुखानी हल्द्वानी के आयुर्वेद (एमडी) नाड़ी रोग विशेषज्ञ वैद्य राहुल गुप्ता ने “नाड़ी परीक्षण” से जुड़ी सभी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया है।

प्रश्न:- क्या नाड़ी परीक्षण पद्धति केवल वात-पित्त-कफ के द्वारा हुए शारीरिक रोगों को जानने की विधा है ?
उत्तर- नहीं, “नाड़ी परीक्षण” पद्धति से शारीरिक रोगों के साथ-साथ आधिदैविक रोगों (ग्रह बाधा/भूत बाधा) का ज्ञान कर पाना भी सम्भव है। यह आधुनिक विज्ञान के पल्स डायग्नोसिस से बिलकुल अलग है।

प्रश्न: क्या हर कोई चिकित्सक नाड़ी वैद्य बन सकता है?
उत्तर- नहीं, असल “नाड़ी परीक्षण” के लिए गुरु सानिध्य में रह कर दीक्षा प्राप्त करना, तथा अंत में गुरु की स्वीकृति मिलने पर ही इसे चिकित्सा में प्रयोग करना सही मायने में फलदायक होता है। इसे महाभारत के एक उदाहरण से समझा जा सकता है जहां पर महारथी कर्ण एक महत्वपूर्ण क्षण में ब्रह्मास्त्र संधान में असफल रहा था, क्योंकि उसे गुरु स्वीकृति प्राप्त नहीं थी।

प्रश्न:- क्या नाड़ी परीक्षण से ग्रह रोग इत्यादि का ज्ञान कर पाना सम्भव है?
उत्तर- हाँ, “नाड़ी परीक्षण” पद्धति में वचा नाड़ी/मध्यमा नाड़ी जैसे कुछ प्रमुख चिन्ह (हज़ारों में से एक रुग्ण में) दिखते है जिससे यह साफ़ हो जाता है की रुग्ण के रोग का असल कारण शारीरिक नहीं अपितु आधिदैविक है। इस सिद्धांत को आधुनिक विज्ञान के बुद्धिजीवी शुरू से नकारते आए हैं क्योंकि इसे किसी भी आधुनिक जाचों से साबित कर पाना असम्भव है। उदाहरण- जब शुक्र (स्पर्म) और शोणित(ओवम) मिलकर गर्भ बनाते है तब उसमें आत्मा का प्रवेश होकर जीवन स्थापित होता है। भ्रूण में आत्मा का यह प्रवेश एक चमक के साथ होता है जिसे आधुनिक जांचों में देखा भी गया है, किंतु इसे भी “ज़िंक स्पार्क” नामक एक रासायनिक प्रक्रिया मानकर ईश्वर के अस्तित्व को नकारने का प्रयास किया जाता है।

यह भी पढ़ें 👉  नगर निगम महापौर गजराज बिष्ट ने सीवरेज और पेयजल योजना को लेकर एडीबी के साथ की बैठक, बरसात खत्म होते ही सड़क निर्माण कार्य होंगे शुरू

प्रश्न:- क्या “नाड़ी परीक्षण” द्वारा आधिदैविक रोगों की जानकारी मिलने पर एक वैद्य उस रोग को हल कर पाने में सक्षम है?
उत्तर- नहीं, ग्रह/भूत बाधा एक अलग विषय है जिसके लिए उस विधा में पारंगत होने की आवश्यकता है। एक कुशल नाड़ी वैद्य केवल रोग के इन आधिदैविक कारणों को चिन्हित कर रोगी को जागरूक करवा सकता है, किंतु इससे निजात दिला पाना उसके कार्यक्षेत्र में नहीं आता। कभी-कभी ऐसे अवसरों पर चिकित्सक द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के लिए किए गए अनावशयक प्रयास चिकित्सक के स्वयं के स्वास्थ्य को भी नुक़सान पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न:- क्या नाड़ी परीक्षण केवल ख़ाली पेट होता है?
उत्तर- नहीं, ख़ाली पेट “नाड़ी परीक्षण” करना आसान होता है तथा इसके लिए रोगी और चिकित्सक दोनो को ख़ाली पेट होना आवश्यक है। आहार इत्यादि घटकों का नाड़ी पर असर होता है जिसे जानना अति आवश्यक है इसलिए, किसी भी समय नाड़ी परीक्षण करवाने में कुछ अनुचित नहीं।

प्रश्न:- नाड़ी परीक्षण करने के लिए क्या कुछ विशेष तैयारियाँ ज़रूरी हैं ?
उत्तर- हाँ, नाड़ी परीक्षण के लिए एक आयुर्वेद चिकित्सक के चित्त को एकाग्र होना अति आवशक है। नियमित ध्यान-जप-प्राणायाम की सहायता से इस अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। शुभ गंध जैसे की चंदन, अगरु इत्यादि के तैल का प्रयोग मन और चित्त की एकाग्रता को बढ़ाने में लाभकर होता है।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड से रुस पढ़ाई करने गए युवक को जबरन यूक्रेन वार में भेजा, परिजनों ने विदेश मंत्रालय से संपर्क कर सकुशल वापसी की लगाई गुहार

प्रश्न:- क्या केवल नाड़ी परीक्षण करना ही चिकित्सा में सफलता प्राप्त करने की कुंजी है?
उत्तर- नहीं, अक्सर कुछ वैद्य अपने नाड़ी ज्ञान का प्रदर्शन कर शुरुआत में रुग्ण को आकर्षित करने में सफल रहते है, किंतु बाद में चिकित्सा से लाभ नहीं मिल पता है। नाड़ी परीक्षण की आवश्यकता रोगी से ज़्यादा चिकित्सक को है, अतः रोगी के सामने इस विधा का अनावशयक प्रदर्शन चिकित्सक की कार्यकुशलता में बाधक बन सकता है।

प्रश्न:- क्या किसी यंत्र से नाड़ी परीक्षण विधि को सरल बनाया जा सकता है ?
उत्तर- नहीं, “नाड़ी परीक्षण” का शारीरिक के साथ एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी है, अतः यांत्रिक नाड़ी परीक्षण केवल रोग के शारीरिक पहलू को ही प्रदर्शित कर सकने में सक्षम होगा।

प्रश्न:- क्या आयुर्वेद में केवल “नाड़ी परीक्षण” रोगों को जानने के लिए पर्याप्त है?
उत्तर- नहीं, रोगों का निदान करने के लिए आयुर्वेद में दर्शन-स्पर्शन-प्रश्न इन तीन तरह की परीक्षाओं का वर्णन है, जिसमें से नाड़ी परीक्षण स्पर्श परीक्षा के अंतर्गत आता है। जैसे आधुनिक विज्ञान में किसी बीमारी को जानने के लिए रोगी के खून की जाँच, उसके रेडियोलॉजिकल जाँचें तथा उसका शारीरिक परीक्षण सभी की आवश्यकता होती है, उसी तरह आयुर्वेद में भी सभी परीक्षाओं के बाद ही रोग को पहचान पाना सम्भव है।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

Anand Batra

Editor-in-Chief - Hills News (www.hillsnews.in)

यह भी पढ़ें 👉